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चोहार घाटी के देवता घढोनी नारायण की रहस्मयी कहानी

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 चोहार घाटी के देवता घढोनी नारायण की रहस्मयी कहानी   छोटी काशी मंडी वाशी  तीन वर्ष के बाद हार भ्रमण पर पद्धर क्षेत्र में पहुंचे। देवरथ के साथ दर्जनों कारदार, वाद्ययंत्री देवता के भ्रमण की शोभा बने हुए हैं। घड़ौनी नारायण का रथ घर घर जाकर लोगों को आशीर्वाद दे रहा है। देव घड़ौनी नारायण का हार भ्रमण इस बार द्रंग सिरा क्षेत्र का है, जो हर तीन वर्ष के उपरांत होता है। घड़ौनी नारायण 24 दिसंबर को हार भ्रमण पर अपने प्राचीन मंदिर घड़ौन गांव से रवाना हुए हैं। सोमवार को देवता का रथ लांझणू, बड़ीधार, बासाधार, तरयांबली, हुल्लू,  सहयोगी, पद्धर : चौहारघाटी अमरगढ़ नरेश बड़ादेयो भगवान बलराम रूपी घड़ौनी नारायण तीन वर्ष के बाद हार भ्रमण पर पद्धर क्षेत्र में पहुंचे हैं। देवरथ के साथ दर्जनों कारदार, वाद्ययंत्री देवता के भ्रमण की शोभा बने हुए हैं।  घड़ौनी नारायण का रथ घर घर जाकर लोगों को आशीर्वाद दे रहा है। देव घड़ौनी नारायण का हार भ्रमण इस बार द्रंग सिरा क्षेत्र का है। देवता 24 दिसंबर को हार भ्रमण पर अपने प्राचीन मंदिर घड़ौन गांव से रवाना हुए हैं।   तीन वर्ष के बाद हार भ्रमण पर पद...

मूलमहुँ नाग से जुड़ा हुआ ऐतिहासिक सच सूर्य पुत्र कर्ण है मूलमहुँ नाग

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मूलमहुँ नाग से जुड़ा हुआ ऐतिहासिक सच सूर्य पुत्र कर्ण है मूलमहुँ नाग हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्तिथ यह मंदिर यह मंदिर सूर्य भगवान के बेटे कर्ण मूल माहुंनाग जी समर्पित है। यह मंदिर बहुत ऐतिहासिक और लोकप्रिय है। यह प्रसिद्ध मंदिर नालदेहरा गोल्फ कोर्स के बीच में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर के इष्टदेव लोगों के कानूनी मामलों और पारिवारिक विवादों को हल करने में सहायता करता है।  यह धार्मिक मंदिर पहाड़ी वास्तुकला की शैली को प्रदर्शित करता है। ऐतिहासिक कथा के अनुसार यह मंदिर 1664 में राजा श्याम सेन द्वारा निर्मित किया गया था। इस लिए यह बहुत ही ऐतिहासिक मंदिर माना जाता है। इन्हे कर्ण का एक प्रबल भक्त माना जाता है। इस मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों की एक बड़ी संख्या हर हफ्ते रविवार को यहां आती है। इस स्थान में सालाना मेले का आयोजन किया जाता है। यह हिंदू त्योहार मकर संक्रांति के दौरान आयोजित किया जाता है।   इस मंदिर की पहाड़ी से शिकारी माता जी के दर्शन, Shikari Mata darshan from the hill of this temple जो भक्तों की बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करता है। करसोग के इस ...

Tarna Mata Mandi Himachal Pradesh ( मां श्यामकाली ने क्यों रखा भगवान शिव पर अपना पैर )

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  प्राचीन काल में राक्षस अपनी तपस्या के बल पर ऐसी शक्तियां प्राप्त कर लेते थे, जिनके सामने टिकना देवताओं के लिए भी मुश्किल हो जाता था। राक्षस अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आतंक और भय फैलाते थे। ऐसी ही एक घटना रक्तबीज नाम से राक्षस से जुड़ी है। रक्तबीज का अंत मां काली के हाथों हुआ, लेकिन इस दौरान गलती से मां काली का पांव भगवान शिव के ऊपर आ गया था। आइये, जानते हैं उस घटना के बारे में। एक बार रक्तबीज नाम के एक राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान हासिल कर लिया। रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि उसका खून जहां भी गिरेगा, वहां से उसी के समान राक्षस पैदा हो जाएगा। रक्तबीज को अपने इस गुण पर बहुत अभिमान था, इसलिए उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। घमंड में चूर रक्तबीज ने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा। देवता रक्तबीज से लड़ने के लिए आ गए, लेकिन जहां भी रक्त बीज का रक्त गिरता, वहां से एक और रक्त बीज पैदा हो जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत सारे रक्तबीज पैदा हो गए, जिन्हें हराने का कोई रास्ता देवताओं को दिखाई नहीं दे रहा था। घबरा कर सभी देवता मां दुर्गा के पास पहु...

Sundarnagar nadwal mela

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  Punjabi singer Ninja live 2022 mandi

त्रिलोकीनाथ मंदिर मंदिर के बारे में त्रिलोकनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल और स्पीति के उदयपुर उप प्रभाग में स्थित है | त्रिलोकनाथ मंदिर का प्राचीन नाम टुंडा विहार है।

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 यह मंदिर 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह एक पत्थर शिलालेख द्वारा साबित होता है जो 2002 में मंदिर परिसर में पाया गया था। त्रिलोकीनाथ मंदिर मंदिर  के बारे में त्रिलोकनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल और स्पीति के उदयपुर उप प्रभाग में स्थित है। यह कीलाँग से लगभग 45 किलोमीटर, लाहौल और स्पीति के जिला मुख्यालय, मनाली से 146 किलोमीटर की दूरी पर है। त्रिलोकनाथ मंदिर का प्राचीन नाम टुंडा विहार है। । यह पवित्र मंदिर हिंदुओं और बौद्धों द्वारा समान रूप से सम्मानित है। हिंदुओं को त्रिलोकनाथ देवता को ‘लार्ड शिव’ के रूप में माना जाता है, जबकि बौद्ध देवताओं को ‘आर्य अवलोकीतश्वर’ तिब्बती भाषा बोलने वाले लोगों को ‘गरजा फग्स्पा’ कहते हैं।  यह पवित्र तीर्थ इतना महत्वपूर्ण है कि यह सबसे घायल तीर्थ तीर्थ के रूप में ओ कैलाश और मानसरोवर के बगल में माना जाता है। मंदिर की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि यह पूरी दुनिया में एकमात्र मंदिर है जहां दोनों हिन्दू और बौद्ध एक ही देवता को अपना सम्मान देते हैं। मंदिर चंद्रमा भगा घाटी में पश्चिमी हिमालय के लिए स्थित है।  यह अत्यधिक आध्यात्मिक...

मंडी शिवरात्रि में लिया हिमाचल प्रदेश के प्रशिद्ध लोकप्रिय नृत्य नाटी का आनंद मंडी

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 मंडी शिवरात्रि में  लिया हिमाचल प्रदेश के प्रशिद्ध लोकप्रिय नृत्य नाटी का आनंद मंडी : अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंडी महाभारतकालीन संस्कृति का आइना है। देव समाज का अध्ययन करने पर इसकी झलक देखने को मिलती है। शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत करने वाले अधिकतर देवी-देवताओं का संबंध महाभारत काल से जुड़ा है। शिवरात्रि महोत्सव में पहुंचे देवी-देवताओं के गूर आज भी महाभारत काल के पांशा के माध्यम से पूछ डालते हुए देखे जा सकते हैं।  शिवरात्रि में शिरकत करने वाले देव छमांहू महाभारत के घटोत्कच के रूप में पूजे जाते हैं। देव छमांहू बलशाली भीम व हिडिबा का पुत्र घटोत्कच हैं, इसका प्रमाण उनके मूल स्थान में आज भी है। विष्णु मतलोड़ा का संबंध भी महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। देव विष्णु मतलोड़ा युद्ध के बाद रणभूमि कुरुक्षेत्र से मंडी और बल्ह घाटी के घासनू होते हुए भाटकीधार पहुंचे थे। महाभारत में योद्धा पुंडरिक शिवरात्रि में पुंडरिक ऋषि के रूप में शिरकत करते हैं। युद्ध के दौरान पुंडरिक ने श्रीकृष्ण को स्वेच्छा से अपना सिर प्रदान कर दिया था। देवी हिडिबा का संबंध भी महाभारत काल से ही है। शिवरात्रि मे...

मगरू महा देव और मंडी शिवरात्रि से जुड़ा हुआ इतिहास मगरू महादेव का मंदिर एक बहुत ही प्राचीन मंदिर हैl

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 मगरू महा देव और मंडी शिवरात्रि से जुड़ा हुआ इतिहास मगरू महादेव का मंदिर एक बहुत ही प्राचीन मंदिर हैl मगरू महादेव दीन दुखियों के पालन हार,मगरू महादेव का मंदिर करसोग से ५०,जंजैहली से ३०,आनी से ३०,तथा जिला मंडी से १००,शिमला से १३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह दो छोटी छोटी नदियों के बीच छतरी नाम के स्थान पर स्थित है. यह एक खूबसूरत जगह पर,पहाड़ों से घिरा हुआ है. श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ मन्नत मांगने और पूजा करने आते है. मगरू महादेव किसी को भी निराश नहीं करते और सबकी झोली भर देतें हैl मगरू महादेव का मंदिर प्राचीन काष्ट कला का एक अद्धभुत नमूना हैl मन्दिर में दीवारों पर लकड़ी की नकाशी ,इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देती हैl मंदिर में मेले लगते रहते है,छतरी मेला उन में से सबसे प्रसिद्ध हैl जो अगस्त महीने में दिनांक १५ से शुरू हो के २० तक चलता हैl यह मेला देखने लोग दूर -दूर से आते है,और मेले का मुख्य आकर्षण लोक गायक होते हैl जो मेले की शोभा को और बढ़ाते हैl इस मेले के अलावा इस मंदिर में और भी मेले होते हैl जैसे छतरी लबी,छतरी ठहिरषुl मंदिर में हर महीने (साजा) में लोग आते है और अपने दुःख दर...

चुहार घाटी के आराधय देवता श्री हुरंग नारायण का ऐतिहासिक रहस्य ( Historical mystery of Shri Hurang Narayan, the deity of Chuhar Valley )

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मंडी जिले की चौहार घाटी में बहुत से देवी देवता हैं। उनमें से तीन मुख्य देवता हैं; इलाका हस्तपुर के देव हुरंग नारायण, अमरगढ़ के देव घड़ौनी नारायण और देव पशाकोट।  कहा जाता है कि ये तीनों देवता भाई हैं। देव श्री हुरंग चुहार घाटी के आराधय देवता श्री हुरंग नारायण का ऐतिहासिक रहस्यनारायण को बड़ा देव भी कहा जाता है। देव श्री घड़ौनी नारायण पधर (मंडी)। महाशिवरात्रि उत्सव खत्म होने पर वापस लौटे चौहारघाटी के आराध्य देव हुरंग नारायण अपने प्राचीन मंदिर हुरंग में सोमवार को विराज गए। मंडी मेले के अंतिम दिन हस्तपुर चौहारघाटी, अमरगढ़ के देवताओं ने मेले में पहले की तरह मान सम्मान न मिलने पर नाराजगी जताई थी।  घाटी के देवता रियासतकाल में जो मान सम्मान उन्हें मंडी के राजाओं द्वारा दिया जाता था उसे अब प्रशासन से चाह रहे हैं। घाटी के अधिकांश देवता उपमंडल मुख्यालय पधर पहुंच गए हैं। भगवान कृष्ण रूपी बड़ादेयो हुरंग नारायण का रथ सोमवार को अपने प्राचीन मंदिर हुरंग गांव में भंडार में विराज गया। वर्षा बरसाकर देव हुरंग नारायण ने पहले शुद्धि की और हारका प्रथा को अंजाम देने के बाद अपने मंदिर में बिराजे। घाटी के द...

देवता पशाकोट जी ऐतिहासिक जानकारी चौहार घाटी

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 चौहार घाटी के प्रसिद्ध देवता बाज़िर पशाकोट जी के दिव्य दर्शन और जाने ऐतिहासिक जानकारी   करे चौहार घाटी के प्रसिद्ध देवता बाज़िर पशाकोट जी के दिव्य दर्शन और जाने ऐतिहासिक जानकारी  #देवता_पशाकोट_जी #ऐतिहासिक_जानकारी चौहार घाटी : चौहार घाटी के प्रसिद्ध आराध्य देव श्री पशाकोट मंदिर जोगिन्दर नगर से 31 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर लोहारडी से 10 -15 किलोमीटर की दूरी पर मराड़ नामक स्थान पर स्थित है.  मंदिर से जुड़ी है एक पुरातन कथा देव पशाकोट मंदिर से एक पुरातन कथा जुडी हुई है. बहुत समय पहले एक लडकी मराड़ में पशुओं को चराने जाती थी. वहीं पर एक सरोवर था. वह लडकी वहाँ पर पानी पीती थी. जब भी वह लडकी उस सरोवर में पानी पीती तभी कहीं से आवाज सुनाई देती – गिर जाऊँ, गिर जाऊँ इसी तरह दिन बीतते गये और लडकी कमजोर होती गई. एक दिन लडकी की माँ ने उससे पूछा बेटी तुम दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही हो. लड़की ने माँ को बताई सारी बात  लडकी ने सारी बात अपनी माँ को बताई. माँ ने बेटी से कहा, तुम कहना की गिर जाओ. अगले दिन लडकी पशुओं को लेकर उसी जगह चली गई. वह सरोवर में पानी पीने ह...

57 साल तक क्यों नहीं ये देवता मंडी शिवरात्रि में जाने इसके पीछे का रहस्य मार्कंडेय ऋषि कथा

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 57 साल तक क्यों नहीं ये देवता मंडी शिवरात्रि में जाने इसके पीछे का रहस्य  मार्कंडेय ऋषि कथा – Rishi Markandeya Story In Hindi. एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मृकंडु, इस क्षेत्र में एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ बच्चा पैदा करने में असमर्थ थे। उन्होंने कई वर्षों तक भगवान शिव से प्रार्थना की, ऋषि की भक्ति से खुश होकर उन्हें भगवान शिव ने लड़के का आशीर्वाद दिया, जिसे ऋषि ने नाम दिया मार्कंडेय।  मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है  मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्लोकों का संग्रह है। १३७ अध्याय वाले इस पुराण में १ से ४२ वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, ४३ वें से ९० अध्य...

Choti Kashi Himachal Wasi is ways to Explore Himachal Pradesh.

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माँ जोगणी का झरना और देहिये मृत पड़े हुए इस सांप को जो बहुत ही खतरनाक है विश्व का सबसे खतरनाक सांप GREEN VIPAR

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हिमाचल प्रदेश मंडी बाबा त्रिलोकीनाथ का ऐतिहासिक रहस्य जो 15 वीं शताब्दी से आज भी वह मौजूद है

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