57 साल तक क्यों नहीं ये देवता मंडी शिवरात्रि में जाने इसके पीछे का रहस्य मार्कंडेय ऋषि कथा





 57 साल तक क्यों नहीं ये देवता मंडी शिवरात्रि में जाने इसके पीछे का रहस्य  मार्कंडेय ऋषि कथा – Rishi Markandeya Story In Hindi. एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मृकंडु, इस क्षेत्र में एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ बच्चा पैदा करने में असमर्थ थे। उन्होंने कई वर्षों तक भगवान शिव से प्रार्थना की, ऋषि की भक्ति से खुश होकर उन्हें भगवान शिव ने लड़के का आशीर्वाद दिया, जिसे ऋषि ने नाम दिया मार्कंडेय।  मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है  मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्लोकों का संग्रह है। १३७ अध्याय वाले इस पुराण में १ से ४२ वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, ४३ वें से ९० अध्याय में वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता क्रप्टुकि हैं तथा इसके बाद के अंश के वक्ता सुमेधा तथा श्रोता सुरथ-समाधि हैं। मार्कण्डेय पुराण आकार में छोटा है। इसमें एक सौ सैंतीस अध्यायों में ही लगभग नौ हजार श्लोक हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम 'मार्कण्डेय पुराण' पड़ा।  इस पुराण के अन्दर पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके द्वारा सब धर्मों का निरूपण किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में पहले मार्कण्डेयजी के समीप जैमिनि का प्रवचन है। फ़िर धर्म संज्ञम पक्षियों की कथा कही गयी है। फ़िर उनके पूर्व जन्म की कथा और देवराज इन्द्र के कारण उन्हें शापरूप विकार की प्राप्ति का कथन है, तदनन्तर बलभद्रजी की तीर्थ यात्रा, द्रौपदी के पांचों पुत्रों की कथा, राजा हरिश्चन्द्र की पुण्यमयी कथा, आडी और बक पक्षियों का युद्ध, पिता और पुत्र का आख्यान, दत्तात्रेयजी की कथा, महान आख्यान सहित हैहय चरित्र, अलर्क चरित्र, मदालसा की कथा, नौ प्रकार की सृष्टि का पुण्यमयी वर्णन, कल्पान्तकाल का निर्देश, यक्ष-सृष्टि निरूपण, रुद्र आदि की सृष्टि, द्वीपचर्या का वर्णन, मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीर्तन और उन्हीं में दुर्गाजी की अत्यन्त पुण्यदायिनी कथा है जो आठवें मनवन्तर के प्रसंग में कही गयी है। तत्पश्चात तीन वेदों के तेज से प्रणव की उत्पत्ति सूर्य देव की जन्म की कथा, उनका महात्मय वैवस्त मनु के वंश का वर्णन, वत्सप्री का चरित्र, तदनन्तर महात्मा खनित्र की पुण्यमयी कथा, राजा अविक्षित का चरित्र किमिक्च्छिक व्रत का वर्णन, नरिष्यन्त चरित्र, इक्ष्वाकु चरित्र, नल चरित्र, श्री रामचन्द्र की उत्तम कथा, कुश के वंश का वर्णन, सोमवंश का वर्णन, पुरुरुवा की पुण्यमयी कथा, राजा नहुष का अद्भुत वृतांत, ययाति का पवित्र चरित्र, यदुवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण की बाललीला, उनकी मथुरा द्वारका की लीलायें, सब अवतारों की कथा, सांख्यमत का वर्णन, प्रपञ्च के मिथ्यावाद का वर्णन, मार्कण्डेयजी का चरित्र तथा पुराण श्रवण आदि का फल यह सब विषय मार्कण्डेय पुराण में बताये गये है।  इन्हें भी देखें    जागरण संवाददाता, मनाली : मंडी-कुल्लू सराज के आराध्य देवता ऋषि मार्कडेय दैवीय शक्तियां लेने अपने देवलुओं व कारकूनों के साथ मनाली पहुंचे। कारकूनों के मनाली पहुंचते ही माल रोड देव वाद्ययंत्रों की धुन से गूंज उठा। पर्यटकों सहित स्थानीय लोगों से देवता से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया। देवता 12 साल बाद शाही स्नान करने व दैवीय शक्तियां प्राप्त करने मनाली के धार्मिक स्थल वशिष्ठ आए हैं। वशिष्ठ में देवता ने आज अपने देवलुओं व कारकूनों के साथ शाही स्नान किया। इस बीच धार्मिक नगरी देव वाद्य यंत्रों से गूंज उठी। देश विदेश से वशिष्ठ घूमने आए सैलानी भी इन ऐतिहासिक वक्त के गवाह बने। बीते वीरवार दोपहर बाद देवता का रथ सैकड़ों देवलुओं के साथ अपने मजां स्थित देवालय से धार्मिक स्थल वशिष्ठ के लिए रवाना हुआ था। इस दौरान देवता अपने सात दिवसीय प्रवास के दौरान खुले में रातें देवलुओं के साथ काट रहे है।      गौर हो कि जिला कुल्लू व मंडी के अधिकतर देवी-देवता सदियों से वशिष्ठ कुंड में शाही स्नान करने व दैवीय शक्तियां प्राप्त करने को समय समय पर वशिष्ठ आते हैं। देवता के कारदार जीवन चंद शास्त्री ने बताया कि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को रोकने और अनहोनी टालने के लिए मंडी-कुल्लू सराज के आराध्य देवता ऋषि मार्कडेय मनाली के वशिष्ठ आए हैं। चार दिन की पैदल यात्रा के बाद आज देवरथ मनाली पहुंचा और वहां माता ढूंगरी और घटोत्कच्छ से मिलन के बाद वशिष्ठ रवाना हुआ। शाम को वशिष्ठ में गर्मपानी के चश्मे में देवलुओं संग स्नान कर देवता राम मंदिर में शक्तियां अर्जित कीं। इससे पहले भी शाही स्नान को व दैवीय शक्तियां लेने 12 वर्ष पहले देवता यहां आया था   मार्कंडेय ऋषि मंदिर की पौराणिक कथा और घूमने की जानकारी Markandeya Rishi Temple In Hindi : मार्कंडेय जी मंदिर बिलासपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मार्कंडेय ऋषि को समर्पित धार्मिक स्थल है। इस मंदिर में भक्त ऋषि मार्कंडेय की पूजा करने के लिए जाते हैं। भले ही यह एक धार्मिक स्थल है लेकिन मंदिर की सुंदरता भी दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है। ऋषि मार्कंडेय मंदिर के पास एक झरना है जिसे बेहद पवित्र माना जाता है क्योंकि इसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं। मार्कंडेय जी की मूर्ति की भी अपनी अलग खासियत है।  भक्तों का यह भी मानना ​​है कि ऋषि मार्कंडेय उन्हें कई शारीरिक बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। कई निःसंतान दंपति संतान प्राप्ति की उम्मीद में ऋषि मार्कंडेय की पूजा करने के लिए आते हैं। इस लेख में आप मार्कंडेय ऋषि मंदिर की यात्रा से जुडी पूरी जानकारी को जानने वाले है    एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मृकंडु, इस क्षेत्र में एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ बच्चा पैदा करने में असमर्थ थे। उन्होंने कई वर्षों तक भगवान शिव से प्रार्थना की, ऋषि की भक्ति से खुश होकर उन्हें भगवान शिव ने लड़के का आशीर्वाद दिया, जिसे ऋषि ने नाम दिया मार्कंडेय। लेकिन भगवान शिव ने यह भी कहा कि जब उनका लड़का 12 साल का हो जायेगा तो वो मर जायेगा, ऋषि इस बात को लेकर बेहद चिंतित था क्योंकि उसे हर दिन यही डर रहता था कि वो एक दिन अपना बच्चा खो देगा।  जब मार्कंडेय थोडा बड़ा हुआ और सब कुछ समझने लगा तो उनसे अपने पिता से पुछा की आप इतने चिंतित क्यों रहते हैं। सच्चाई जानने के बाद मार्कंडेय ने भगवान शिव से प्रार्थना करने का फैसला किया। जब भगवान शिव मार्कंडेय के सामने आए, तो वह बैसाखी का दिन था। भगवान शिव मार्कंडेय के ध्यान और समर्पण से काफी खुश हुए और उसे लम्बी आयु का वरदान दिया। उसी समय उस स्थान पर पवित्र झरना बहने लगा। इस झरने को चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। मार्कंडेय जी मंदिर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सुबह का है क्योंकि यहां काफी भीड़ होती है।  3.मार्कंडेय ऋषि मंदिर के आसपास के प्रमुख पर्यटन और दर्शनीय स्थल – Markandeya Rishi Temple Ke Pass Paryatan Sthal In Hindi मार्कंडेय ऋषि मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आप अगर शहर की यात्रा पर हैं तो इसके साथ ही मंदिर के पास के नीचे दिए गए प्रमुख पर्यटन स्थलों की सैर भी कर सकते हैं। व्यास गुफा, सतलज नदी के तट पर है, जहाँ महाकाव्य महाभारत के लेखक ऋषि व्यास तपस्या के दिनों में यहाँ रहे थे। यह गुफा 610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सतलुज के बाएं किनारे पर स्थित है। इन गुफाएँ की वजह से इस शहर को पहले शहर व्यासपुर के नाम से जाना जाता था। अगर आप इतिहास प्रेमी है तो आपको इन गुफाओं को देखने के लिए जरुर जाना चाहिए।  कंदूर ब्रिज कभी सतलज पर यह पुल कभी एशिया का सबसे ऊँचा पुल था और 80 मीटर की ऊँचाई पर बना था, जो आज भी दुनिया के सबसे ऊँचे पुलों में से एक है। यह पुल चूना पत्थर की चट्टानों से घिरा हुआ है और नीचे की नदी हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के पानी के कारण ग्रीष्मकाल के दौरान कगार पर होती है। भाखड़ा नांगल बांध हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में सतलुज नदी पर भाखड़ा गाँव में स्थित है। बता दें कि इस बांध के जलाशय को गोबिंद सागर ’के रूप में जाना जाता है, जिसमें 9. 34 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा होता है। यह बाँध हर साल देश भर से पर्यटकों की एक बड़ी संख्या को अपनी तरफ आकर्षित करता है। भाखड़ा बांध नांगल शहर से 15 किमी दूर है। भाखड़ा नंगल बहुउद्देश्यीय बांध भारत के स्वतंत्र होने के बाद नदी घाटी विकास योजनाओं में से हैं। यह दुनिया के सबसे ऊंचे गुरुत्वाकर्षण बांधों में से एक है। 

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